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7 मिनट पहलेलेखक: किरण जैन

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एक्टर ठाकुर अनूप सिंह ने मराठी-हिंदी फिल्म ‘धर्मरक्षक महावीर छत्रपति संभाजी महाराज’ में छत्रपति संभाजी महाराज का किरदार निभाया है। उनके लिए यह फिल्म सिर्फ एक रोल नहीं, बल्कि एक सपने जैसा है। अनूप ने दैनिक भास्कर के साथ खास बातचीत में इस किरदार और उससे जुड़ी चुनौतियों पर बात की।

इसके साथ ही, विक्की कौशल भी जल्द ही बड़े परदे पर छत्रपति संभाजी महाराज का किरदार निभाते नजर आएंगे। उनकी फिल्म ‘छावा’ अगले साल रिलीज होगी।

विक्की के संभाजी महाराज के वर्जन को देखने के लिए एक्साइटेड हूं

अनूप कहते हैं, ‘मैंने विक्की का काम देखा है। ‘उरी’ और ‘सैम बहादुर’ में उनका काम बहुत अच्छा था। मैं उन्हें बेहतरीन एक्टर मानता हूं। छत्रपति संभाजी महाराज जैसा किरदार किसी एक्टर को जीवन में एक बार ही मिलता है। विक्की भी भाग्यशाली हैं और मैं भी खुद को भाग्यशाली मानता हूं। इस पर और फिल्में बननी चाहिए, ताकि इस किरदार को और पहचाना जा सके।’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह जरूरी है कि इसे शिक्षा के मकसद से इस्तेमाल किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी इतिहास जान सके। अफसोस है कि मेरे बचपन में इतिहास की किताबों में छत्रपति संभाजी महाराज का कोई चैप्टर नहीं था। इस फिल्म की शूटिंग करते वक्त मुझे एहसास हुआ कि इस किरदार के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया। ऐसे किरदारों पर और फिल्में बननी चाहिए, और मैं विक्की के संभाजी महाराज के वर्जन को देखने के लिए बहुत एक्साइटेड हूं।’

किरदार को निभाने का मौका मिलना था सौभाग्य

अनूप बताते हैं कि जब यह फिल्म उनके पास आई, तो उन्होंने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा, ‘यह मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। छत्रपति शिवाजी और संभाजी महाराज मेरे आदर्श रहे हैं। उनका साहस और संघर्ष हमेशा मुझे प्रेरित करता रहा है। जब मुझे यह किरदार निभाने का मौका मिला, तो यह सिर्फ एक रोल नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी थी। यह रोल उनके आदर्शों को समझकर लोगों तक पहुंचाने के लिए था।’

उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसे किरदार बहुत कम मिलते हैं। जब ऐसा मौका मिले, तो उसे पूरी मेहनत और दिल से निभाना चाहिए। इस किरदार ने मुझे एक्टिंग ही नहीं, बल्कि जिंदगी के कई पहलुओं में भी सिखाया है। मैंने इसे पूरी तरह से समझने की कोशिश की।’

मराठी भाषा और इतिहास को समझने में मिली कठिनाई

इस किरदार को निभाने के लिए अनूप को मराठी भाषा और उस समय के इतिहास को समझने में काफी मेहनत करनी पड़ी। उन्होंने कहा, ‘फिल्म में उस वक्त की मराठी भाषा का इस्तेमाल किया गया था, जो आजकल से बहुत अलग थी। उसे सही से बोलना और समझना चैलेंजिंग था। मैंने पहले ‘महाभारत’ जैसे प्रोजेक्ट्स किए थे, लेकिन इस किरदार के लिए मुझे और भी मेहनत करनी पड़ी। कई बार रात को डायरेक्टर से सवाल पूछता था कि महाराज ने यह बात क्यों कही और उसका सही मतलब क्या था?’

शारीरिक तैयारी और शूटिंग की चुनौतियां

इस ऐतिहासिक किरदार को निभाने के लिए सिर्फ डायलॉग ही नहीं, बल्कि फिजिकल तरीके से भी तैयार होना जरूरी था। उन्होंने कहा, ‘मैं पहले से फिट था, लेकिन इस फिल्म ने मेरी शारीरिक सहनशक्ति को एक नई चुनौती दी। हमें भारी आर्मर पहनकर धूप में 8-10 घंटे तक शूटिंग करनी पड़ती थी।

कई बार तो मुझे याद नहीं रहता था कि मैंने खाना खाया है या नहीं। शूटिंग खत्म होने के बाद, शरीर कांपने लगता था। ऐसे में गर्म पानी और नमक का सहारा लेना पड़ता था। यह एक्सपीरियंस काफी थका देने वाला था। लेकिन इसने मुझे अपने किरदार के और करीब ला दिया।’

इतिहास से जुड़ने का अनुभव

फिल्म की शूटिंग महाराष्ट्र के ऐतिहासिक किलों, जैसे सातारा और विजयदुर्ग में की गई। अनूप ने कहा, ‘इन जगहों पर काम करना बहुत खास था। यहां की हवा, मिट्टी और माहौल ने हमें इतिहास को महसूस करने का मौका दिया। जब आप उस जगह पर शूट करते हैं, जो आपके किरदार की कहानी का हिस्सा रही हो, तो आपका एक्टिंग खुद-ब-खुद बेहतर हो जाता है। यह एक्सपीरियंस जिंदगी भर याद रहेगा।’

यह फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि

अनूप को उम्मीद है कि फिल्म ऑडियंस को जरूर पसंद आएगी। ‘यह फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक एक्सपीरियंस है, जिसे ऑडियंस हर फ्रेम में महसूस करेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि यह फिल्म हर पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक साबित होगी।’

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